सनातन धर्म की परिभाषा क्या है , सनातन धर्म क्या है
सनातन का अर्थ है जो अनंत हो, सत्य हो , सदा से ही और सदा के लिए हो । जिसमे हरेक बात का शाश्वत महत्व हो , वही सनातन कही गई है।
ईश्वर ही सत्य है, मोक्ष ही सत्य है , जैसे आत्मा सत्य है,वैसे ही सनातन सत्य है। और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला धर्म ही सनातन धर्म भी सत्य है।
वह सत्य जो अनादि काल से चला आ रहा है , और जिसका कभी भी अंत नहीं होगा वह ही सनातन या शाश्वत है। जिनका न प्रारंभ है और जिनका न अंत है। उस सत्य को ही सनातन कहते हैं। यही सनातन धर्म का सत्य है।
सनातन धर्म मतलब जो पूर्ण है , ख़ुद बख़ुद है, शुद्ध है, सबके लिए है। और सबके लिए समान रूप से हितकर है। जो सदा से है, जिस धर्म से सब धारण किया गया है, ध्रुव है और सदा रहेगा , वही सनातन है
जैसे गुरुत्वाकर्षण के नियम हैं वैसे ही सनातन धर्म है ।
जो कर्म, विचार, भाव सबके हित, सबकी भलाई, प्रेम भरे हों, वे इस धर्म के अनुकूल हैं और अन्यथा वाले प्रतिकूल। धर्म पूर्वक की गयी चेष्टा लोगों को आंनद और विकास के रास्ते पर ले जाएगी।
शुद्ध और सनातन धर्म वही है ,जिसके पालन से मनुष्य और समाज का कल्याण हो रहा है ,और मरने के बाद भी आगे सद्गति हो, कल्याण ही होगा । जिसमें कल्याण के सिवाय कुछ और ना हो वही सनातन धर्म है।
इस धर्म को सनातन इसलिए कहा जाता है , क्यूँकि इसके नियम अटल है, प्राकृतिक हैं, ध्रुव हैं। आज भी है, कल भी था और और आने वाले समय में भी रहेगा।
सनातन नियम क्या हैं
सनातन धर्म में हर एक किर्या को नियम में बाँधा गया है , और हर एक नियम को धर्म में। यह नियम ऐसे हैं जिससे आप किसी भी प्रकार का बंधन महसूस नहीं करेंगे, बल्कि यह नियम आपको सफल और निरोगी ही बनाएँगे। जीवन में सफल ही बनाएंगे।
नियम से जीना ही धर्म है।
।। कराग्रे वस्ते लक्ष्मी, कर मध्ये सरस्वती। कर पृष्ठे स्थितो ब्रह्मा, प्रभाते कर दर्शनम्॥
प्रात:काल जब निद्रा से जागते हैं तो सर्व प्रथम बिस्तर पर ही हाथों की दोनों हथेलियों को खोलकर उन्हें आपस में जोड़कर उनकी रेखाओं को देखते हुए उक्त का मंत्र एक बार मन ही मन उच्चारण करते हैं , और फिर हथेलियों को चेहरे पर फेरते हैं।
पश्चात इसके भूमि को मन ही मन नमन करते हुए , पहले दायाँ पैर उठाकर उसे आगे रखते हैं। और फिर शौच आदि से निवृत्त होकर , पाँच मिनट का ध्यान या संध्यावंदन करते हैं। शौच आदि के भी नियम है।
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सुबह घर से बाहर जाते वक्त
घर ( गृह ) से बाहर जाने से पहले माता-पिता के पैर छुए जाते हैं , फिर पहले दायाँ पैर बाहर निकालकर सफल यात्रा और सफल मनोकामना की मन ही मन ईश्वर के समक्ष इच्छा व्यक्त की जाती है।
किसी से मिलते वक्त , चाहे अपरिचित हो , कुछ लोग जय श्री राम , राम-राम , गुड मार्नींग, जय श्रीकृष्ण, जय गुरु, जय श्री राधे या अन्य तरह से अभीवादन करते हैं।
लेकिन संस्कृत शब्द नमस्कार को मिलते वक्त किया जाता है , और नमस्ते को जाते वक्त। फिर भी कुछ लोग इसका उल्टा भी करते हैं। विद्वानों का मानना हैं कि नमस्कार सूर्य उदय के पश्चात्य और नमस्ते सुर्यास्त के पश्चात किया जाता है।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक हिंदुओं ने अभिवादन के अपने-अपने तरीके इजाद कर लिए हैं , जो की गलत है।
हिंदू धर्म की बुनियादी पाँच बातें तो है ही, 1 - वंदना , 2 - वेदपाठ, 3 - व्रत , 4 - तीर्थ , और 5 - दान
लेकिन इसके अलावा निम्न सिद्धांत को भी जानें --
1 - ब्रह्म ही सत्य है
ईश्वर एक ही है और वही प्रार्थनीय तथा पूजनीय है। वही सृष्टा है वही सृष्टि भी। शिव, राम, कृष्ण आदि सभी उस ईश्वर के संदेश वाहक है। हजारों देवी-देवता उसी एक के प्रति नमन हैं। वेद, वेदांत और उपनिषद एक ही परमतत्व को मानते हैं।
2 - केवल वेद ही धर्म ग्रंथ है
कितने लोग हैं जिन्होंने वेद पढ़े? सभी ने पुराणों की कथाएँ जरूर सुनी और उन पर ही विश्वास किया तथा उन्हीं के आधार पर अपना जीवन जिया और कर्मकांड किए। पुराण, रामायण और महाभारत धर्मग्रंथ नहीं इतिहास ग्रंथ हैं।
ऋषियों द्वारा पवित्र ग्रंथों, चार वेद एवं अन्य वैदिक साहित्य की दिव्यता एवं अचूकता पर जो श्रद्धा रखता है , वही सनातन धर्म की सुदृढ़ नींव को बनाए रखता है।
3 - सृष्टि की उत्पत्ति और प्रलय
सनातन हिन्दू धर्म की मान्यता है कि सृष्टि उत्पत्ति, पालन एवं प्रलय की अनंत प्रक्रिया पर चलती है। गीता में कहा गया है कि जब ब्रह्मा का दिन उदय होता है, तब सब कुछ अदृश्य से दृश्यमान हो जाता है |
और जैसे ही रात होने लगती है, सब कुछ वापस आकर अदृश्य में लीन हो जाता है। वह सृष्टि पंच कोष तथा आठ तत्वों से मिलकर बनी है। परमेश्वर सबसे बढ़कर है।
4 - कर्म वान बनो
सनातन हिन्दू धर्म भाग्य से ज्यादा कर्म पर विश्वास रखता है। कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है। कर्म एवं कार्य-कारण के सिद्धांत अनुसार प्रत्येक व्यक्ति अपने भविष्य के लिए पूर्ण रूप से स्वयं ही उत्तरदायी है।
प्रत्येक व्यक्ति अपने मन, वचन एवं कर्म की क्रिया से अपनी नियति स्वयं तय करता है। इसी से प्रारब्ध बनता है। कर्म का विवेचन वेद और गीता में दिया गया है।
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5 - पुनर्जन्म में विश्वास
सनातन हिन्दू धर्म पुनर्जन्म में विश्वास रखता है। जन्म एवं मृत्यु के निरंतर पुनरावर्तन की प्रक्रिया से गुजरती हुई आत्मा अपने पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है। आत्मा के मोक्ष प्राप्त करने से ही यह चक्र समाप्त होता है।
6 - प्रकति की प्रार्थना
वेद प्राकृतिक तत्वों की प्रार्थना किए जाने के रहस्य को बताते हैं। ये बादल , अग्नि , जल ,नदी , पहाड़ , समुद्र , वायु, आकाश और हरे-भरे प्यारे वृक्ष हमारी कामनाओं की पूर्ति करने वाले हैं।
अत: इनके प्रति कृतज्ञता के भाव हमारे जीवन को समृद्ध करते हैं। इनकी पूजा नहीं प्रार्थना की जाती है। यह ईश्वर और हमारे बीच सेतु का कार्य करते हैं। यही दुख मिटाकर सुख का सृजन करते हैं।
7 - गुरु की महिमा का महत्व
सनातन धर्म में सद्गुरु के समक्ष वेद शिक्षा-दिक्षा लेने का महत्व है। किसी भी सनातनी के लिए एक गुरु (आध्यात्मिक शिक्षक) का मार्ग दर्शन आवश्यक है।
गुरु की शरण में गए बिना अध्यात्म व जीवन के मार्ग पर आगे बढ़ना असंभव है। लेकिन वेद यह भी कहते हैं कि अपना मार्ग स्वयं चुनों। जो हिम्मतवर है वही अकेले चलने की ताकत रखते हैं।
8 - केवल सनातन में है , सर्वधर्म सम भाव
'आनो भद्रा कृत्वा यान्तु विश्वतः'- ऋग्वेद के इस मंत्र का अर्थ है कि किसी भी सदविचार को अपनी तरफ किसी भी दिशा से आने दें। ये विचार सनातन धर्म एवं धर्मनिष्ठ साधक के सच्चे व्यवहार को दर्शाते हैं।
चाहे वे विचार किसी भी व्यक्ति, समाज, धर्म या सम्प्रदाय से हो। यही सर्वधर्म समभाव: है। हिंदू धर्म का प्रत्येक साधक या आमजन सभी धर्मों के सारे साधु एवं संतों को समान आदर देता है।
9 - यम और नियम पर आधारित जीवन
यम नियम का पालन करना प्रत्येक सनातनी का कर्तव्य है।
यम अर्थात -- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह।
नियम अर्थात - शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणिधान।
10 - मोक्ष का मार्ग महत्वपूर्ण देन
मोक्ष की धारणा और इसे प्राप्त करने का पूरा विज्ञान विकसित किया गया है। यह सनातन धर्म की महत्वपूर्ण देन में से एक है। मोक्ष में रुचि न भी हो तो भी मोक्ष ज्ञान प्राप्त करना अर्थात इस धारणा के बारे में जानना प्रमुख कर्तव्य है। और सबकी इच्छा भी रहती।
11 - संध्या वंदन की महिमा
सूर्योदय और सूर्यास्त की संधि काल में ही संध्या वंदन की जाती है। वैसे संधि पाँच या आठ वक्त की मानी गई है, लेकिन सूर्य उदय और अस्त अर्थात दो वक्त की संधि महत्वपूर्ण है। इस समय मंदिर या एकांत में शौच, आचमन, प्राणायामादि कर गायत्री छंद से निराकार ईश्वर की प्रार्थना की जाती है।
12 - पितरों श्राद्ध-तर्पण का महत्व
पितृ देवों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं। तथा तृप्त करने की क्रिया और देवताओं, ऋषियों या पितरों को तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं। तर्पण करना ही पिंडदान करना है। श्राद्ध पक्ष का सनातन हिंदू धर्म में बहुत ही महत्व माना गया है।
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13 - दान की महिमा
दान से इंद्रिय भोगों के प्रति आसक्ति छूटती है। मन की ग्रथियाँ खुलती है , जिससे मृत्युकाल में लाभ मिलता है। मृत्यु आए इससे पूर्व सारी गाँठे खोलना जरूरी है , जो जीवन की आपाधापी के चलते बंध गई है। दान सबसे सरल और उत्तम उपाय है। वेद और पुराणों में दान के महत्व का वर्णन किया गया है।
14 - संक्रांति का महत्व
उन त्योहार, पर्व या उत्सवों को मनाने का महत्व अधिक है , जिनकी उत्पत्ति स्थानीय परम्परा, व्यक्ति विशेष या संस्कृति से न होकर। जिनका उल्लेख वैदिक धर्मग्रंथों, धर्मसूत्रों और आचार संहिता में मिलता है।
ऐसे कुछ पर्व हैं और इनके मनाने के अपने नियम भी हैं। इन पर्वों में सूर्य-चंद्र की संक्रांतियों और कुम्भ का अधिक महत्व है। सूर्य संक्रांति में मकर सक्रांति का महत्व ही अधिक माना गया है।
15 - यज्ञ कर्म के प्रकार
वेदानुसार यज्ञ पाँच प्रकार के होते हैं -
1 - ब्रह्मयज्ञ 2 - देवयज्ञ 3 - पितृयज्ञ 4 - वैश्वदेव यज्ञ 5 - अतिथि यज्ञ।
उक्त पाँच यज्ञों को पुराणों और अन्य ग्रंथों में विस्तार बताया गया है। वेदज्ञ सार को पकड़ते हैं , विस्तार को नहीं ।
16 - वेद पाठ नियम
वेदों को अध्ययन करना और उसकी बातों की किसी जिज्ञासु के समक्ष चर्चा करना पुण्य का कार्य है, लेकिन किसी बहस कर्ता या भ्रमित व्यक्ति के समक्ष वेद वचनों को कहना वर्जित माना जाता है।
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