मालामाल कर देता है श्री यंत्र , प्रतिदिन करें पूजा और पढ़ें ये मंत्र
श्रीयंत्र, धन की देवी मां लक्ष्मी से जुड़ा है | श्रीयंत्र में 2816 देवी-देवताओं की सामूहिक अदृश्य शक्ति मौजूद रहती है | श्रीयंत्र के मुख्य देवी-देवता हैं : - -
1 - मां लक्ष्मी
2 - महान देवी ललिता, जिन्हें त्रिपुरसुंदरी, महाराजनी और राजराजेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है
3 - श्रीयंत्र के नौ अवरणों की विभिन्न अधिष्ठात्री देवियाँ
ज्योतिष शास्त्र में मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए श्रीयंत्र का विशेष महत्व बताया गया है | श्रीयंत्र की विधिवत् पूजा करने से मां लक्ष्मी का आपके घर में स्थायी वास होता है |
जहां भी श्रीयंत्र की पूजा होती है , वहां मां लक्ष्मी की कृपा से धन-सम्पति की कभी कोई कमी नहीं रहती है |
श्रीयंत्र को यंत्रराज, यंत्र शिरोमणि, षोडशी यंत्र और देवद्वार भी कहा जाता है |
श्रीयंत्र माँ लक्ष्मी जी से संबंधित है । श्री का अर्थ होता है माँ लक्ष्मी। मान्यता यह है कि देवी लक्ष्मी ने स्वयं गुरू बृहस्पति से कहा है कि श्रीयंत्र साक्षात् लक्ष्मी का स्वरूप है।
श्रीयंत्र की पूजा करें या माँ लक्ष्मी जी की मतलब एक है। श्रीयंत्र में माँ लक्ष्मी की आत्मा और शक्ति समाहित हैं।
यदि मनुष्य वास्तव में सुखी और सृमद्व होना चाहता है तो उसे श्रीयंत्र स्थापना अवश्य करनी चाहिये।
यंत्र को देवता का शरीर और मंत्र को आत्मा कहते हैं। यंत्र और मंत्र दोनों की साधना उपासना मिलकर शीघ्र फल देती है। जिस तरह मंत्र की शक्ति उसके शब्दों में निहित होती है उसी तरह यंत्र की शक्ति उसकी रेखाओं व बिंदुओं में होती है।
यह सर्वाधिक लोकप्रिय प्राचीन यन्त्र है, इसकी अधिष्टात्री देवी स्वयं श्रीविद्या अर्थात त्रिपुर सुन्दरी हैं और उनके ही रूप में इस यन्त्र की मान्यता है। यह बेहद शक्तिशाली ललिता देवी का पूजा चक्र है ।
इसको त्रैलोक्य मोहन अर्थात तीनों लोकों का मोहन यन्त्र भी कहते है।
सभी देवी देवताओं के यंत्रों में श्रीदेवी का यंत्र सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। इसी कारण से इसे यंत्रराज की उपाधि दी गयी है। इसे यन्त्रशिरोमणि भी कहा जाता है।
श्रीचक्र के बारे में कहा जाता है कि यह न केवल देवी की असीमित शक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह देवी का ज्यामितिय रूप है।
श्रीयंत्र का उल्लेख तंत्रराज, ललिता सहस्रनाम, कामकलाविलास , त्रिपुरोपनिषद आदि विभिन्न प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मिलता है। महापुराणों में श्री यंत्र को देवी महालक्ष्मी का प्रतीक कहा गया है ।
इन्हीं पुराणों में वर्णित भगवती महात्रिपुर सुन्दरी स्वयं कहती हैं- ‘श्री यंत्र मेरा प्राण, मेरी शक्ति, मेरी आत्मा तथा मेरा स्वरूप है। श्री यंत्र के प्रभाव से ही मैं पृथ्वी लोक पर वास करती हूं।’
श्री यंत्र में 2816 देवी देवताओं की सामूहिक अदृश्य शक्ति विद्यमान रहती है। इसीलिए इसे यंत्रराज, यंत्र शिरोमणि, षोडशी यंत्र व देवद्वार भी कहा गया है।
ऋषि दत्तात्रेय व दूर्वासा ने श्री यंत्र को मोक्षदाता माना है । जैन शास्त्रों ने भी इस यंत्र की प्रशंसा की है ।
मकान, दुकान आदि का निर्माण करते समय यदि उनकी नींव में प्राण प्रतिष्ठत श्री यंत्र को स्थापित करें तो वहां के निवासियों को श्री यंत्र की अदभुत व चमत्कारी शक्तियों की अनुभूति स्वतः होने लगती है।
श्री यंत्र की पूजा से लाभ
शास्त्रों में कहा गया है कि श्रीयंत्र की अद्भुत शक्ति के कारण इसके दर्शन मात्र से ही लाभ मिलना शुरू हो जाता है । इस यंत्र को मंदिर या तिजोरी में रखकर प्रतिदिन पूजा करने व प्रतिदिन कमलगट्टे की माला से श्री लक्ष्मी मंत्र ( “ श्री महालक्ष्म्यै नम : ” एक माला यानि 108 बार जाप ) के जप के साथ करने से लक्ष्मी प्रसन्न रहती है , और धनसंकट दूर होता है ।
आज बाजार में अनेक धातुओं ओर रत्नों के बने श्री यंत्र आसानी से प्राप्त हो जाते हैं, किंतु वे विधिवत सिद्ध व प्राणप्रतिष्ठित नहीं होते हैं ।
सिद्ध श्री यंत्र में विधिपूर्वक हवन-पूजन आदि करके देवी-देवताओं को प्रतिष्ठित किया जाता है तब श्री यंत्र समृद्धि देने वाला बनता है ।
ओर यह भी आवश्यक नहीं है कि श्री यंत्र रत्नों का ही बना हो, श्री यंत्र तांबे पर बना हो अथवा भोजपत्र पर बना हो |
जब तक उसमें मंत्र व देवशक्ति विधिपूर्वक प्रवाहित नहीं की गई हो तब तक वह श्री प्रदाता अर्थात फल प्रदान करने वाला नहीं होता है, इसलिए सदैव विधिवत प्राणप्रतिष्ठित श्रीयन्त्र ही स्वीकार करना चाहिए ।
श्री यन्त्र को यंत्र शिरोमणि श्रीयंत्र, श्रीचक्र व त्रैलोक्यमोहन चक्र भी कहते हैं । धन त्रयोदशी और दीपावली को यंत्रराज श्रीयंत्र की पूजा का अति विशिष्ट महत्व है । श्री यंत्र या श्री चक्र सारे जगत को वैदिक सनातन धर्म, अध्यात्म की एक अनुपम और सर्वश्रेष्ठ देन है।
इसकी उपासना से जीवन के हर स्तर पर लाभ का अर्जन किया जा सकता है, इसके नव आवरण पूजन के मंत्रों से यही तथ्य उजागर होता है।
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मूल रूप में श्रीयन्त्र नौ यन्त्रों से मिलकर एक बना है , इन नौ यन्त्रों को ही हम श्रीयन्त्र के नव आवरण के रूप में जानते हैं, श्री चक्र के नव आवरण निम्नलिखित हैं :-
1 - त्रैलोक्य मोहन चक्र -
तीनों लोकों को मोहित करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
2 - सर्वाशापूरक चक्र -
सभी आशाओं, कामनाओं की पूर्ति करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
3 - सर्व संक्षोभण चक्र -
अखिल विश्व को संक्षोभित करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
4 - सर्व सौभाग्यदायक चक्र -
सौभाग्य की प्राप्ति,वृद्धि करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
5 - सर्वार्थ सिद्धिप्रद चक्र -
सभी प्रकार की अर्थाभिलाषाओं की पूर्ति करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
6 - सर्वरक्षाकर चक्र -
सभी प्रकार की बाधाओं से रक्षा करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
7 - सर्वरोगहर चक्र -
सभी व्याधियों, रोगों से रक्षा करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
8 - सर्वसिद्धिप्रद चक्र -
सभी सिद्धियों की प्राप्ति करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
9 - सर्व आनंदमय चक्र -
परमानंद या मोक्ष की प्राप्ति करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
श्री संपूर्ण यंत्र किस दिशा में लगाना चाहिए , श्री यंत्र को कहां रखना चाहिए
श्री यंत्र को घर की उत्तर-पूर्व दिशा में रखना चाहिए | श्री यंत्र को इस तरह रखना चाहिए कि उसका सिरा पूर्व दिशा की ओर हो | श्री यंत्र को आँख के स्तर से बराबर रखना चाहिए |
श्री यंत्र को स्थापित करने के लिए, आप ये कदम उठा सकते हैं : –
1 - स्नान करके साफ़ कपड़े पहनें |
2 - श्री यंत्र को पंचामृत और गंगाजल से साफ़ करें |
3 - ईशान कोण में लाल कपड़ा बिछाएं |
4 - बीज मंत्र- ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं नम: या ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं का जाप करते रहें |
श्री यंत्र को कहां रखना चाहिए , क्या नियम हैं ?
1 - श्री यंत्र को घर के मंदिर, पूजा गृह, तिजोरी, काम करने की जगह, पढ़ने की जगह, आदि पर रखा जा सकता है | श्री यंत्र को नियमित रूप से धूप, दीप आदि से पूजा करनी चाहिए |
2 - श्री यंत्र को दुनिया का सबसे शक्तिशाली यंत्र माना जाता है. इसे सभी यंत्रों का राजा भी कहा जाता है |
3 - श्री यंत्र को पूजा घर में शुक्रवार या किसी शुभ मुहूर्त पर स्थापित करना चाहिए |
4 - श्री यंत्र को घर की उत्तर-पूर्व दिशा में रखना चाहिए | अगर श्री यंत्र की तस्वीर है, तो उसे हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा में रखना चाहिए | अगर श्री यंत्र क्रिस्टलीकृत रूप में है , तो उसे उत्तर दिशा में केंद्रीय बिंदु पूर्व की ओर रखते हुए रख सकते हैं |
5 - श्री यंत्र को इस तरह से रखें कि उसका और आपकी आंखों का स्तर एक बराबर हो और आप उसे ठीक प्रकार से देख पाएं |
6 - श्री यंत्र को घर के पूजा गृह, तिजोरी में रख कर नियमित रूप से धूप, दीप आदि से पूजा करनी चाहिए | ऐसा करने से मनुष्य को धन-धान्य और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है |
श्री संपूर्ण यंत्र के फायदे
श्री यंत्र को मां लक्ष्मी का सूचक माना जाता है. श्री यंत्र की स्थापना से कई फ़ायदे होते हैं : - - -
1 - कारोबार में सफलता |
2 - समृद्धि , आर्थिक मजबूती , धन का अभाव नहीं होता |
3 - पारिवारिक सुख , घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है |
4 - नौकरी में तरक्की |
5 - वास्तु दोष दूर होते हैं |
श्री यंत्र की स्थापना करने के लिए , इसे पूजा घर में शुक्रवार या किसी शुभ मुहूर्त पर स्थापित करना चाहिए | श्री यंत्र को एक चौकी पर गुलाबी रंग के आसन पर रखें |
किसी धर्माचार्य से इसकी प्राण प्रतिष्ठा करें | नियमित तौर पर हर दिन श्री यंत्र को जल से स्नान कराएं |
श्री यंत्र को सभी यंत्रों की जननी माना जाता है | यह मर्दाना और स्त्री दैवीय ऊर्जा के मिलन का प्रतिनिधित्व करता है।
श्री यंत्र बीज मंत्र क्या हैं
श्री यंत्र को स्थापित करते समय इन मंत्रों का जाप किया जाता है | श्री यंत्र को स्थापित करते समय इस बात का ध्यान रखें कि आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा में हो |
श्री यंत्र के बीज मंत्र हैं , श्री यंत्र को स्थापित करते समय ये मंत्र जाप करें
1 - “ ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं नम : ”
2 - “ श्री महालक्ष्म्यै नम : ”
3 - “ श्री ह्रीं क्लीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम : ”
4 - “ ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्री ह्रीं श्री ॐ महालक्ष्म्यै नम : ”
श्री यंत्र को स्थापित करने से घर में लक्ष्मी का वास होता है और धन की कभी कमी नहीं होती |
श्रीयंत्र एक पवित्र यंत्र है | इसे मां लक्ष्मी का प्रिय यंत्र माना जाता है | मान्यता है कि इसकी पूजा करने से देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है |
श्रीयंत्र की पूजा करने से घर में सुख-संपत्ति , सौभाग्य और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है |
श्रीयंत्र को घर की उत्तर-पूर्व दिशा (वास्तु के अनुसार उत्तर दिशा) में रखना चाहिए | इसे इस तरह से रखें कि उसका और आपकी आंखों का स्तर एक बराबर हो और आप उसे ठीक प्रकार से देख पाएं |
श्रीयंत्र की पूजा विधि , श्री यंत्र साधना
चतुर्भिः शिवचक्रे शक्ति चके्र पंचाभिः।
नवचक्रे संसिद्धं श्रीचक्रं शिवयोर्वपुः॥
श्रीयंत्र को पूजा घर में शुक्रवार या किसी शुभ मुहूर्त पर स्थापित करना चाहिए | पहले श्रीयंत्र को एक चौकी पर गुलाबी रंग के आसन पर रखें | नियमित तौर पर हर दिन श्री यंत्र को जल से स्नान कराएं | धूप, दीप, नैवेद्य चढ़ाएं | श्रीयंत्र पर मां लक्ष्मी के प्रिय लाल या गुलाबी रंग के फूल और इत्र जरूर चढ़ाएं |
श्रीयंत्र की पूजा करने के लिए : —
1 - इसे लाल कपड़े पर रखें |
2 - श्रीयंत्र को पंचामृत यानी दूध, दही, शहद, घी और शक्कर को मिलाकर स्नान कराएं |
3 - फिर इसे गंगाजल से स्नान कराएं |
4 - लाल फूल , लाल चंदन , मेंहदी , रोली , अक्षत ( चावल ), लाल दुपट्टा चढ़ाएं |
5 - मिठाई का भोग लगाएं |
6 - धूप , दीप , कपूर से आरती करें |
श्री यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा के लिए , निम्न मंत्र का कण से कम 11 बार जाप कीजिए - - -
चतुर्भिः शिवचक्रे शक्ति चके्र पंचाभिः।
नवचक्रे संसिद्धं श्रीचक्रं शिवयोर्वपुः॥
श्रीयंत्र को धनतेरस के मौके पर खरीदना चाहिए और दिवाली के दिन इसकी स्थापना करनी चाहिए | इसे घर के पूजा गृह, तिजोरी में रख कर नियमित रूप से धूप, दीप आदि से पूजा करनी चाहिए |
श्री यंत्र को स्थापित करने से घर में लक्ष्मी का वास होता है , और धन की कभी नहीं होती। श्री यंत्र की स्थापना से कारोबार में सफलता, समृद्धि, आर्थिक मजबूती और पारिवारिक सुख प्राप्त होते हैं।
NOTE - विधिवत किसी धर्माचार्य से इसकी प्राण प्रतिष्ठा करवाएं , किसी तसल्ली , भरोसेमंद जगह से प्राण प्रतिष्ठा किया हुआ श्री यन्त्र ही लें |
सीधा बाजार से खरीद कर अपनी दुकान ,मकान या व्यापारिक प्रतिष्ठान पर ना लगाएं। ये शुभ नहीं होता। ये कोई नुक्सान नहीं करेगा तो कोई फायदा भी नहीं होगा।
यहाँ पढ़ें - सुखी और प्रसन्न रहने का क्या उपाय है ?
जानकारी अच्छी लगी तो फॉलो कीजिए और दायीं और लाल घंटी को
दबा दीजिए , ताकि अगली पोस्ट जल्दी से जल्दी आपके पास पहुंचे ,
धन्यवाद
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