मैं घर पर शीतला माता की पूजा कैसे करूँ ? sheetla mata

सारे रोग कष्ट हो जाएंगे दूर , शीतला माता की पूजा कीजिए 

मैं घर पर शीतला माता की पूजा कैसे करूँ ? sheetla mata


मां का यह पौराणिक मंत्र 'ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः' भी प्राणियों को सभी संकटों से मुक्ति दिलाकर समाज में मान सम्मान पद एवं गरिमा की वृद्धि कराता है |

जिनकी उपासना से अनेक संक्रामक रोगों से मुक्ति मिलती है |

इस लेख में लगभग सभी सवालों का उत्तर दिया है।

 मैं घर पर शीतला माता पूजा कैसे करूँ ? शीतला माता मंत्र  शीतला माता को प्रसन्न कैसे करें ? शीतला माता कवच , शीतला माता को कैसे मनाए ?  शीतला माता की महिमा ,शीतला माता किसकी कुलदेवी है ? शीतला माता का कौन सा वार है ? घर पर शीतला माता की पूजा कैसे करें ? शीतला माता का दिन कौन सा होता है ?( sheetla mata) लेख पूरा पढ़ें। INSTAGRAM पर भी इस प्रकार की पोस्ट डालते रहते हैं। 

 

जैसा की नाम माता शीतला है। वो अपने नाम के अनुरुप ही शीतल हैं। इनकी पूजा करने से जीवन में अशांती दूर हो जाती है , और शांति और शीतलता का वास होता है , घर में सुख शांति आती है। 


गुडगाँव (अब गुरु ग्राम ) श्री शीतला माता मंदिर से शहर की पहचान है , जिनको गुड़गांव वाली माता भी कहा जाता है । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, जाट और गुर्जर समेत कई समाजों में उनकी कुलदेवी के रूप में मान्यता है। 

यहां पर ना केवल आस पास के , बल्कि दूसरे प्रदेशों से भी लोग आकर बच्चों के मुंडन संस्कार व शादी-विवाह करते हैं। 


मंदिर के मुख्य द्वार के पास बरगद का पेड़ है। श्रद्धालु अपनी अभिलाषा की पूर्ति के लिए पेड़ से चुन्नी या मौली बांधकर शीतल जल चढ़ाकर मन्नत मांगते हैं। और माता भरपूर आशीर्वाद भी देती है। 

शीतला माता अपने कुल की संरक्षिका हैं। स्त्रियां संतान प्राप्ति के लिए माता की पूजा करती हैं। यहां सोमवार के दर्शन करने को विशेष महत्व है।


 साल भर में करीब 15-16 लाख श्रद्धालु यहां आते हैं।  इस धार्मिक स्थल पर हर उम्र के पुरुष-महिलाएं दिखती हैं जो लाल रंग का दुपट्टा और मुरमुरा प्रसाद के रूप में चढ़ाते हैं। 

ऐसी मान्यता है कि यह देवी सभी कष्टों से छुटकारा दिलाती हैं।


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शीतला माता का दिन कौन सा है

होली और फाग ( रंगपंचमी ) के बाद शीतला अष्टमी का पर्व महत्वपूर्ण होता है।  शीतला अष्टमी चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को पड़ती है।  और इसके एक दिन पहले सप्तमी तिथि को शीतला सप्तमी मनाई जाती है। इसे बसोड़ा भी कहा जाता है। 

श्री शीतला अष्टमी का त्योहार इसलिए भी खास होता है, क्योंकि इस दिन शीतला माता को बासी और ठंडे पकवानों का भोग लगाने का चलन है । घर के सभी सदस्य भी शीतला अष्टमी के दिन बासी और ठंडा खाना ही खाते हैं। 


 शीतला अष्टमी पर शीतला माता की पूजा में दही, दूध, गन्ने का रस, चावल और अन्य चीजों से बने नैवेद्य का भोग लगाया जाता है।  माता को भोग लगाने के लिए रात में नहाने के बाद महिलाएं पकवान तैयार करती हैं। 


 लेकिन पकवान बनाते समय शारीरिक शुध्दता विशेष ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि यह कोई साधारण पकवान नहीं बल्कि प्रसाद के रूप में माता शीतला को चढ़ाया जाने वाला विशेष भोग होता है ।  


जानते हैं शीतला अष्टमी पर माता शीतला को भोग लगाए जाने वाले पकवानों में क्या और कैसे बनाएं।

श्री शीतला सप्‍तमी के दिन खीर , मीठे चावल , चूरमा, शकर पारे, पूड़ी, दाल-भात, लापसी , पुआ, पकौड़ी, रबड़ी, बाजरे की रोटी और सब्‍जी आदि जैसे पकवान बनाए जाते हैं। 


 इन पकवानों को तैयार कर बिना जूठा किए रख दिया जाता है।  और शीतला अष्टमी के दिन सबसे पहले माता को इन्हें भोग लगाया जाता है।


 पुरे परिवार के सदस्य माता की धोक लगाते और अपनी मनोकामना मानते हैं।  इसके बाद घर के सदस्य इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। 


इस प्रशाद को केवल घर के सदस्य ही ग्रहण करते हैं ,बाहर नहीं बांटा जाता। इस दिन दूध और दूध से बानी वस्तुएं दान नहीं करनी चाहिए।


शीतला माता का भोग बनाते समय न करें ये गलतियां


माता का भोग तैयार करते समय उसे इतना अधिक न पकाएं कि वह जलकर लाल हो जाए।  पकवानों को धीमी आंच पर ही पकाएं |

भोग के लिए पकवान बनाते समय केवल देसी घी का ही प्रयोग करें। 


जो भी प्रशाद के रूप में पकवान बनाना है , वो सप्तमी की रात को ही तैयार कर लें।  अगले दिन के लिए कोई काम शेष न रखें। 


प्रशाद को तैयार करने के बाद रसोईघर को भी अच्छी तरह से साफ कीजिए , और इसके बाद चूल्हे पर रोली, अक्षत फूल आदि चढ़ाकर दीप जलाएं।  इस पूजा के बाद अष्टमी तक चूल्हा नहीं जलना चाहिए।  


श्री शीतला अष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कीजिए।  इसके बाद थाली में दही, रबड़ी, चावल, पुआ, पूड़ी, सब्जी आदि आपने जो भी कुछ पकवान तैयार किए हैं, सभी को इसमें शीतला माता के भोग लिए भर दें।


  इसके बाद विधि-विधान से शीतला माता की पूजा करें। भोग लगाने के बाद इस थाली में जो प्रशाद बचता है ,वो घर में उपस्स्थित पुरुष ही खायेगा। 

हर महीने शुक्ल पक्ष की अष्टमी को शीतला अष्टमी का व्रत रख्हा जा सकता है। ये दिन भगवान शिव की अर्धांगिनी मां पार्वती के ही स्वरूप माता शीतला को समर्पित है। 


 शीताल माता को आरोग्य की देवी कहा जाता है। चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी यानी शीतला अष्टमी या बसोड़ा के दिन देवी शीतला की पूजा करने वालों को चेचक, खसरा आदि संक्रमित रोग नहीं होते। 


माता शीतला की पूजा में इन बातों का रखें खास ख्याल


बासी भोजन ही शीतला माता का प्रशाद होता है। एक दिन पहले बनाया हुआ भोजन करना चाहिए भोजन ठंडा ही हो , उसे गरम नहीं करना चाहिए। 


 माता शीतला के पूजन में किसी भी गरम चीज का सेवन नहीं करना चाहिए। शीतला माता के व्रत रखने पर ठंडे जल से ही नहाना चाहिए। 


इस दिन चूल्हा नहीं जलाते , चूल्हे की पूजा की जाती है।

 

मन्त्रः


ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः ॥ ( 11 बार बोलना है )


माता शीतला की कथा

माता शीतला की कथा को सुनने और पढ़ने से शुभ फलों में वृद्धि होती है। शीतला माता की कथा इस प्रकार है |


किसी गांव में एक बुजुर्ग स्त्री अपने बेटे-बहुओं के साथ रहती थी। सुख पूर्वक जीवन व्यतीत कर रही थी। एक बार माता शीतला सप्तमी का दिन आता है। बुजुर्ग स्त्री और उसकी दोनों बहुएं शीतला माता के सप्तमी का व्रत रखती हैं। बुजुर्ग स्त्री खाना बना कर रख देती है।  


क्योंकि माता के व्रत में शीतल व बासी भोजन करना होता है। लेकिन उसकी दोनों बहुओं को कुछ समय पूर्व ही संतान प्राप्ति हुई होती है, वो सोचती है , बासी भोजन करने से उनकी संतानों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।  इस कारण वह भोजन नहीं खाना चाहती । 


माता शीतला की पूजा पाठ करने बाद दोनों बहुओं ने माता शीतला के बासी भोजन का सेवन नहीं किया और अपने लिए खाना बना कर खा लिया।  जब उनकी सास माँ ने उनसे खाने को कहा तो उन दोनों ने बहाना बना दिया ,और सास को झूठ बोल दिया की वह दोनों घर का काम खत्म करने के बाद भोजन कर लेंगी।  बहुओं की बात सुन सास बासी भोजन खा लेती है।  बहुएं माता का भोजन नहीं खाती है। 


दोनों बहुओं के इस कार्य से शीतला माता उनसे रुष्ट हो जाती है।  माता के क्रोध के परिणाम स्वरुप बहुओं के बच्चों की मृत्यु हो जाती है।  अपनी संतान की ऎसी दशा देख दोनों बहु रोने लगती है , अपनी सास को सारी सच्चाई बता देती है।  सास को जब इस बात का पता चलता है तो वह अपनी बहुओं को घर से निकाल देती है।  बहुएं अपनी मृत संतानों को अपने साथ लेकर वहां से चली जाती है । 


रास्ते में दोनों एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठ जाती है ।  वहीं पर ओरी और शीतला नामक दो बहनें मिलती है।  वह दोनों अपने सिर पर पड़े कीड़ों से दुखी हो रखी होती हैं। बहुओं को उन पर दया आती है , और वह उनकी मदद करती है ।  शरीर पर से पिड़ा दूर होने पर दोनों को सकून मिलता है।  और वह बहुओं को पुत्रवती होने का आशीर्वाद देती है। 


बहुएं पहचान जाती हैं की वह बहने शीतला माता है, दोनों बहुओं ने माता से क्षमा याचना की तो माता को उन पर दया आती है।  और वह उन्हें माफ कर देती हैं।  संतान के पुन: जीवित होने का वरदान देती हैं।  शीतला माता के वरदान से बच्चे जीवित हो जाते हैं  , और बहुएं अपनी संतान को लेकर अपने घर जाकर सास और गांव के लोगों को इस चमत्कार के बारे में बताती हैं।  सभी लोग शीतला माता की जयकार करते हैं और माता का पूजन भक्ति भाव से करने लगते है । 

जयादातर सवालों , मैं घर पर शीतला माता पूजा कैसे करूँ ? शीतला माता मंत्र  शीतला माता को प्रसन्न कैसे करें ? शीतला माता कवच , शीतला माता को कैसे मनाए ?  शीतला माता की महिमा ,शीतला माता किसकी कुलदेवी है ? शीतला माता का कौन सा वार है ? घर पर शीतला माता की पूजा कैसे करें ? शीतला माता का दिन कौन सा होता है ? ( sheetla mata) के उत्तर देने की कोशिश की है। 


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कुलदेवी कौन होती है ?


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