प्रार्थना का सबसे सरल रूप क्या है?
आप को एक संत के अनुभव की बात बताता हूँ
जिस से —आप को प्रार्थना के सबसे सरल रूप का पता चलेगा .. सबसे सरल माने ..विद्या - अभ्यास - बौधिक स्तर - अनुभव - संपत्ती - जेंडर- वय -धर्म जैसे किसी भी मुद्दे पर किसी भी प्रकार की प्राथमिक जरुरत या मांग जताए बगैर हर कोई कर सके वैसा सरल रूप |
एक बेटी ने एक संत से आग्रह किया कि वो हमारे घर आकर उसके बीमार पिता से मिलें, प्रार्थना करें। बेटी ने यह भी बताया कि उसके बुजुर्ग पिता पलंग से उठ भी नहीं सकते।
संत ने बेटी के आग्रह को स्वीकार किया।
कुछ समय बाद जब संत घर आए, तो उसके पिताजी पलंग पर दो तकियों पर सिर रखकर लेटे हुए थे और एक खाली कुर्सी पलंग के साथ पड़ी थी।
संत ने सोचा कि शायद मेरे आने की वजह से यह कुर्सी यहां पहले से ही रख दी गई हो।
संत ने पूछा - मुझे लगता है कि आप मेरे ही आने की उम्मीद कर रहे थे,
पिता- नहीं, आप कौन हैं?
संत ने अपना परिचय दिया और फिर कहा- मुझे यह खाली कुर्सी देखकर लगा कि आपको मेरे आने का आभास था।
पिता- ओह यह बात नहीं है, आपको अगर बुरा न लगे तो कृपया कमरे का दरवाजा बंद करेंगे क्या? संत को यह सुनकर थोड़ी हैरत हुई,फिर भी दरवाजा बंद कर दिया।
पिता- दरअसल इस खाली कुर्सी का राज मैंने आज तक किसी को भी नहीं बताया, अपनी बेटी को भी नहीं। पूरी जिंदगी,मैं यह जान नहीं सका कि प्रार्थना कैसे की जाती है।
मंदिर जाता था, पुजारी के श्लोक सुनता था, वो तो सिर के ऊपर से गुज़र जाते थे,कुछ भी पल्ले नहीं पड़ता था। मैंने फिर प्रार्थना की कोशिश करना छोड़ दिया।
लेकिन चार साल पहले मेरा एक दोस्त मिला उसने मुझे बताया कि प्रार्थना कुछ नहीं,
भगवान से सीधे संवाद का माध्यम होती है, उसी ने सलाह दी कि एक खाली कुर्सी अपने सामने रखो, फिर आस्था रखो कि वहाँ भगवान खुद ही विराजमान हैं !
अब भगवान से ठीक वैसे ही बात करना शुरू करो, जैसे कि अभी तुम मुझसे कर रहे हो।
मैंने ऐसा ही करके देखा, मुझे बहुत अच्छा लगा, फिर तो मैं रोज दो-दो घंटे ऐसा करके देखने लगा, लेकिन यह ध्यान रखता था कि मेरी बेटी कभी मुझे ऐसा करते न देख ले।
अगर वह देख लेती, तो परेशान हो जाती या वह फिर मुझे मनोचिकित्सक के पास ले जाती।
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यह सब सुनकर संत ने बुजुर्ग के लिए प्रार्थना की, सिर पर हाथ रखा और भगवान से बात करने के क्रम को जारी रखने के लिए कहा।
संत को उसी दिन दो दिन के लिए शहर से बाहर जाना था,इसलिए विदा लेकर चले गए।
दो दिन बाद बेटी का फोन संत के पास आया कि उसके पिता की उसी दिन कुछ घंटे बाद ही मृत्यु हो गई थी, जिस दिन पिताजी आपसे मिले थे। संत ने पूछा कि उन्हें प्राण छोड़ते वक्त कोई तकलीफ तो नहीं हुई?
बेटी ने जवाब दिया- नहीं, मैं जब घर से काम पर जा रही थी, तो उन्होंने मुझे बुलाया, मेरा माथा प्यार से चूमा, यह सब करते हुए उनके चेहरे पर ऐसी शांति थी, जो मैंने पहले कभी नहीं देखी थी।
जब मैं वापस आई, तो वो हमेशा के लिए आंखें मूंद चुके थे, लेकिन मैंने एक अजीब सी चीज भी देखी। पिताजी ऐसी मुद्रा में थे जैसे कि खाली कुर्सी पर किसी की गोद में अपना सिर झुकाए हों। संतजी, वो क्या था?
यह सुनकर संत की आंखों से आंसू बह निकले, बड़ी मुश्किल से बोल पाए - काश, मैं भी जब दुनिया से जाऊं तो ऐसे ही जाऊँ। बेटी! तुम्हारे पिताजी की मृत्यु भगवान की गोद में हुई है। उनका सीधा सम्बन्ध सीधे भगवान से था। उनके पास जो खाली कुर्सी थी, उसमें भगवान बैठते थे और वे सीधे उनसे बात करते थे।
उनकी प्रार्थना में इतनी ताकत थी कि भगवान को उनके पास आना पड़ता था।
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