अगर सवाल का सीधा सीधा जवाब दिया जाए तो जवाब होगा मंत्र सिद्ध होने पर वह कार्य पूर्ण होगा जिसकी पूर्णता के लिए मंत्र साधना की गई है
मंत्र की एक सच्चाई है कि कोई भी व्यक्ति सुबह-शाम आंखें बंद करके घर या मंदिर में मन से अगर मंत्र का जाप करता है तो उसे बहुत फायदा हो सकता है।उसे मानसिक शांति मिलेगी और हर कार्य के लिए भरपूर एकाग्रता भी मिलेगी।जो उसके जीवन भर के लिए फायदेमंद साबित होगा।
मंत्र की शक्ति का अनुभव होगा। थोड़े ही समय के जप से असीम शांति और आनंद की अनुभूति होती हैं। आपके संपर्क में आने वाला व्यक्ति भी इसे अनुभव कर सकता हैं । प्रायः ऐ सबने अनुभव किया होगा की सिद्ध संतो के भजन और मंत्र उच्चारण को सुनते ही शांति और रोमांच की अनुभूति होती हैं।
ऐसा भी हो सकता है कि भारत के अंदर सदियों से मंत्र को गुप्त रखने का प्रावधान बनाया गया हो। इसलिए आज तक सार्वजनिक रूप से, मंत्र के प्रभाव के बारे में लोगों को स्पष्ट जानकारी नहीं है।
हमारे पुराने धर्म ग्रंथ रामायण महाभारत में मंत्रों द्वारा उड़ने ,गायब हो जाने, मंत्र द्वारा विमान चलाने की कला और और दिव्य दृष्टि द्वारा कहीं पर भी, बैठे बैठे सब कुछ स्पष्ट देख लेना, एक सहज क्रिया थी।
लेकिन वह कुछ व्यक्तियों तक ही सीमित रह गया था।जिसके कारण वह चमत्कार आज लुप्त हो गए हैं।जिस कारण से मंत्रों का श्रेय आज विज्ञान ने ले लिया है।
इसलिए मंत्र द्वारा अगर, जनकल्याण का सचमुच भला हो सकता है।कम खर्च में इलाज संभव हो सकता है।लोगों की कामनाएं पूर्ण हो सकती है,तो इसे पूर्ण रूप से सार्वजनिक करने में कोई हर्ज नहीं है।बल्कि देश की प्रगति के लिए यह "मील का पत्थर" साबित होगा।
मंत्र का सीधा सम्बन्ध ध्वनि से है। ध्वनि प्रकाश, ताप, अणु-शक्ति, विधुत -शक्ति की भांति एक प्रत्यक्ष शक्ति है। मन्त्रों में नियत अक्षरों का एक खास क्रम, लय और आवर्तिता से उपयोग होता है।
इसमें प्रयुक्त शब्द का निश्चित भार, रूप, आकार, शक्ति, गुण और रंग होता हैं। एक निश्चित उर्जा, फ्रिक्वेन्सि और वेवलेंथ होती हैं।
इन बारीकियों का धयान रखा जाए तो मंत्रों की मिट्टी से बनायी गई आकृति से भी उसी तरह की ध्वनी आती है।
उदाहरण के लिए गीली मिट्टी से ॐ की पोली आकृति बनाई जाए और उसके एक सिरे पर फूंक मारी जाए तो ॐ की ध्वनि स्पष्ट सुनाई देती है जैसे पास ही कोई ओम मन्त्र का उच्चारण कर रहा हो। जप के दौरान उत्पन्न होने वाली ध्वनि एक कम्पन लाती है।
उस से सूक्ष्म ऊर्जा-गुच्छ पैदा होते है और वे ही घनीभूत होकर मन्त्र को सफल बनाते हैं। सफलता की उस प्रक्रिया पर ज्यादा कुछ कहना जल्दबाजी होग।
सिर्फ उन की सफलता के लक्षणों की बारे में बताया जा सकता है। सफलता के जो लक्षण हैं उनमें कुछ इस प्रकार है। जब बिना जाप किये साधक को लगे की मंत्र-जाप स्वतः चल रहा हैं तो मंत्र की सिद्धि होनी अभिष्ट हैं।
साधक सदैव अपने इष्ट -देव की उपस्थिति अनुभव करे और उनके दिव्य-गुणों से अपने को भरा समझे तो मंत्र-सिद्ध हुआ जाने। शुद्धता, पवित्रता और चेतना का उर्ध्गमन का अनुभव करे, तो मंत्र-सिद्ध हुआ जानें मंत्र सिद्धि के पश्चात साधक की शुभ और सात्विक इच्छाए पूरी होने लगती हैं।
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